Monday 23 January 2017

Inequality in income for development

बेहतर विकास के लिए: आय में समानता जरूरी बनाम आय में जरूरी असमानता
आदरणीय सम्पादक महोदय,
आपके विचार को inext Allahabad, January 17 के संस्करण में पढ़ा. मै समझता हूँ कि इस विषय पर गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता है. इस विचार विमर्श का लक्ष्य सरकार और नीति आयोग को विकास के बेहतर रास्ते चुनने और नीति बनाने में सहायता पहुंचना होगा.
“अगर असमानता ज्यादा बढ़ेगी, तो विकास की रफ़्तार घटेगी”
मै मानता हूँ विकास के लिए असमानता तो आवश्यक है, पर ज्यादा नही. (अति सर्वत्र वर्जयेत्!) समान धरातल होने पर गति अवरुद्ध हो जाता है. स्वाभाविक विकास के लिए असमानता आवश्यक है. ज्यादा से मै समझता हूँ (इसका अर्थ है) जरूरत से ज्यादा! जैसा आपने भी माना है. अत: मूल प्रश्न अधोलिखित हैं:
१.     बेहतर विकास के लिए कितनी असमानता की आवश्यकता है?
२.     सर्वोत्कृष्ट असमानता कैसे तय होगी कौन करेगा यह काम?
३.     कैसे यह असमानता स्तर बरकरार रहेगी?
विषय वस्तु को समझने के लिए पहले समझना होगा विकास क्या है? नेतृत्व का लक्ष्य विकास किसे कहते हैं? क्या विकास का मापदण्ड आर्थिक समृद्धि मात्र है? जबाब है नही. विकास का अर्थ है आत्मनिर्भरता की दिशा में निरंतर अग्रसर होते रहना. विकसित देश और समाज वह है जिसे दूसरों से कुछ लेने की जरूरत के बजाय दूसरों को कुछ देने की क्षमता हो. समाज में मनुष्य को आत्मनिर्भर होने के लिए मूलत: तीन स्तरों पर उन्नति पथ पर चलना होगा. अर्थात विकास तीन स्तरों पर होने से ही पूर्ण विकास कहलायेगा. वे तीन स्तर हैं:
अ)   शारीरिक विकास
आ) आर्थिक समृद्धि विकास
इ)    मानसिक विकास
पुन: मानसिक विकास के दो सूक्ष्म स्तर हैं बौद्धिक एवं आध्यात्मिक.
यह विकास प्रक्रिया स्वत: प्रकृति के द्वारा सम्पादित होती रहती है इस प्रक्रिया को अबाध चलने देना और सम्भावित अवरोधों से बचाना ही समाज के नेतृत्व की जिम्मेदारी है. पुन:, इस नेतृत्व का विकास उपरोक्त तीन के अतिरिक्त विकास का चौथा स्तर है जो तीनो स्तरों से जुड़ा है.
पूरी प्रक्रिया, निष्क्रिया, से उत्पन्न दो प्रकार के बलों से चलायमान है
१.     क्रियात्मक बल: यह बल हर प्रकार के बदलाव, परिवर्तन, और नवनिर्माण के लिए जिम्मेदार है.
२.     प्रतिक्रियात्मक बल: यह बल क्रियात्मक बल को अनुशाशित रखती है ताकि सृष्टि और विकास प्रक्रिया अबाध गति से सदिश पूर्ण विकास तक चलती रहे. पूर्ण विकास वास्तव में लय की स्थिति है जहां पुन: सभी क्रियायें सतब्ध हो जाती हैं. दोनों बलों का लोप हो जाता है.
उपरोक्त बातों को समझने के बाद आइए समझें नेतृत्व को क्या करना है.
शारीरिक स्वास्थ्य और विकास के लिए सारे मौके सुलभ बनाएं. स्वास्थ्य के लिए मूलभूत बातें हैं:
१.     स्वस्थ शिशु का जन्म
२.     स्वच्छ हवा
३.     स्वस्थ भोजन और
४.     सत्कर्म (व्यायाम सम्मिलित)
स्वस्थ संतानोत्पत्ति: स्वस्थ शिशु जन्म के लिए समाज में स्वस्थ एवं उत्कृष्ट विवाह पद्धति का होना परम आवश्यक है. मैथुन और संतानोत्पत्ति क्षमता (स्त्रियों एवं विवाह की प्रथा) का आदर परम आवश्यक है.
शिशु का स्वास्थ्य, विकास, आकार – प्रकार आदि परिस्थियों (देश – काल) आदि पर भी निर्भर करता है. उदाहरण के लिए पहाड़ पर जन्मे शिशु मैदान में जन्मे शिशु शहर में जन्मे शिशु गाओं में जन्मे शिशु नैसर्गिक रूप से अलग अलग होते हैं. अत: औषधालयों के अतिरिक्त बहुत सी बातों को समझ कर ऐसी व्यवस्था का निर्माण होना चाहिए जिससे genetically स्वस्थ शिशु जन्म ले और विकसित हो.
आज का क़ानून ऐसा है कि कोई भी वयस्क लडका किसी भी वयस्क लड़की से विवाह कर संतानोत्पत्ति कर समाज में डाल सकता हैं. यह सही नही है. Genetic science और पुरातन ज्ञान के सदुपयोग से वभिन्न विवाह एवं संतानोत्पत्ति प्रणालियों को उपलब्ध कराना समाज के नेतृत्व की प्राथमिकता होनी चाहिए. ऐसे मानसिक रूप से उन्नत वैज्ञानिकों को, जो ऐसे प्रणालियों को विकसित कर सकते हों, प्रतिष्ठा देकर समाज निर्माण में लगाना नेतृत्व का कर्तव्य है.
स्वच्छ हवा: मोटे तौर पर इसके लिए वायु प्रदूषण को रोकना और निकालने की व्यवस्था करनी होगी. प्रदूषण के कई घटक हैं उनमे से कारखानों के उपोत्पाद (bye products) सबसे महत्वपूर्ण हैं. अत: नेतृत्व को तय करना होगा उन वस्तुओं की उत्पादन सीमा जिनसे प्रदूषण बढ़ता है. सीमा तय करने के लिए आवश्यक है यह जानकारी कि कितना प्रदूषण हम निष्काषित या neutralize कर सकते हैं. गैसों के प्रदूषण से निजात पेड़ों द्वारा मिलती है अत: वन सम्पत्ति को देखते हुए उतनी ही वस्तुओं के उत्पादन की अनुमति दी जाय जिससे वायु शुद्ध रहे. अत: कारखानों के साथ साथ वनों को भी बढाना पड़ेगा. वायु और वृक्षों का आदर आवश्यक है.
स्वस्थ भोजन: अलग अलग जलवायु और कर्तव्य कार्य के लिए अलग अलग प्रकार के भोजन की आवश्यकता होती है. भोजन के दो मूलभूत स्रोत हैं: एक भूमि (शाकाहार) दूसरा जानवर (मांसाहार). भूमि की पैदावार और प्रदूषण के संतुलन को बनाये रखने में जानवरों की बड़ी भूमिका है. अत: पशु सम्पदा के आकलन के बाद ही तय करना होगा कितना और कौन सा पशु आहार के लिए किसे उपलब्ध कराया जाय.
भूमि से प्राप्त भोजन के लिए जल अत्यंत महत्वपूर्ण है. जल की उपलब्ध मात्रा और गुणवत्ता के आकलन के बाद ही कृषि नीति का सही निर्धारण करना होगा. पशु, भूमि और जल का समुचित आदर आवश्यक है.
सत्कर्म: सत्कर्म वह है जिससे सुख एवं स्वास्थ्य लाभ दीर्घजीवी हो. दो प्रकार के कर्म मनुष्य के लिए अनिवार्य हैं. एक शारीरिक और दूसरा मानसिक. दोनों प्रकार के कर्मों की ट्रेनिंग की व्यवस्था (skill development) परिवार और विद्यालयों में होनी चाहिए. देश का निर्धारित नैतिक मूल्य सुपरिभाषित होना होगा. इस नैतिक मूल्य सूची की अवमानना दण्डनीय अपराध घोषित होगा. परिवारों एवं विद्यालयों में इस प्रकार सुनिश्चित और निर्धारित national value system की अनिवार्य प्रशिक्षण व्यवस्था होनी होगी.
यदि परिवार को समाज की इकाई माने तो कर्म की कई समस्याएं सुलझ सकती है. परिवार प्रथा में परिवार का एक मुखिया नैसर्गिक रूप से होता है और वह (कोई भी माता पिता सन्तान का) परिवार का  बुरा नही चाहता. अत: मुखिया के पास अतिरिक्त अधिकार और कर्तव्य होना चाहिए. प्रत्येक परिवार में कम से कम एक धनोपार्जन करने वाला व्यक्ति हो यह व्यवस्था नेतृत्व की जिम्मेदारी और परिवार का अधिकार हो.
ध्यान रहे हर प्रकार के कर्म करने की क्षमता हर व्यक्ति में नही हो सकती. किसी भी व्यक्ति के कर्म क्षेत्र का निर्धारण निम्न बातों को ध्यान में रख कर तय की जानी चाहिए. गुणों के अनुरूप ही क्रिया होती है. नेतृत्व की जिम्मेदारी होगी कि कोई भी under employed अथवा over employed न हो.
यदि चाहते हैं विकास तो किसी भी प्रकार के समाजिक अथवा आर्थिक हितो के लिए योग्यता का बलिदान नही होना चाहिए. योग्यता/कार्य कुशलता के अनुरूप ही व्यक्ति कार्य करेगा और तदनुरूप ही आय भी निर्धारित होगी.

क)   व्यक्ति की अपनी रूचि और योग्यता
ख)   विद्यालयों और ट्रेनिंग केन्द्रों में व्यक्ति की उपलब्धि, और अनुशंसा
ग)   परिवार के मुखिया की अनुशंसा
 

महोदय,
यदि यह आपको प्रकाशित करने योग्य लगेगा तो इसके आगे की दो और विकास के बातें आर्थिक समृद्धि विकास और मानसिक विकास के बाबत लिखूंगा.
Kashi Kant Mishra
9621096622
18-01-2017


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